Add To collaction

लेखनी कहानी -01-Jun-2022 डायरी जून 2022

ओट में अस्तित्व 


डायरी सखि , 
आज तो खुद ही खुद पर लिखवा रही हो हमसे । क्यों , और कोई विषय नहीं मिला क्या ? तुम भी तो "ओट" में ही रहती हो सखि । जैसे एक स्त्री रहती है ओट में । पहले अपने पिता की ओट में । फिर पति की ओट में । और अंत में पुत्र की ओट में । 

पर अब इस व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं सखि । इस व्यवस्था पर ही क्यों , अब तो हर व्यवस्था पर सवाल उठने लग गये हैं । मैं जहां तक समझता हूं कि आज स्त्रियों को संपूर्ण आजादी है अपने देश में । पढने लिखने में । अपना कैरियर चुनने में । अपना जीवन साथी चुनने में । और यहां तक कि अब तो पूरे घर परिवार में वही निर्णायक भूमिका अदा करती है । सारे महत्वपूर्ण निर्णय भी अब लगभग वही लेती है । किसको क्या देना है , किससे क्या लेना है ? फिर भी शिकायतें हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं । अब तो पुरुष बेचारा सा लगता है, सखि ।

कोई जमाना था जब पुरुष प्रधान व्यवस्था थी । अब या तो दोनों बराबर हैं या फिर स्त्री भारी है । फिर भी सब लोग पुरुषों को ही दोषी ठहरा देते हैं । स्त्री की गलतियों को अनदेखा करते हैं और पुरुषों की गलतियों पर उन्हें कठोर दंड देने की बात की जाती है । 

आज के समय में सारी सामाजिक वर्जनाएं टूट रही हैं । विवाह अब बोझ लगने लगा है । "लिव इन रिलेशनशिप" रास आने लगी है । जब लिव इन में बच्चा हो जाता है और दोनों लडके लडकी अलग हो जाते हैं तो बेचारे बच्चे का भविष्य तो चौपट हो जाता है न सखि । तब कौन जिम्मेदार है इसके लिए ? अब विवाह तक कौमार्य सुरक्षित रखने की आवश्यकता नहीं समझते हैं लोग । विवाहेत्तर संबंध तो अब आम बात ही हो गये हैं । अब विवाह के लिए विपरीत लिंग की भी आवश्यकता नहीं है । अब तो लोग "लेस्बियन और गे" रिलेशनशिप भी रखने लगे हैं और सुप्रीम कोर्ट ने ये सब "अप्राकृतिक संबंधों" को मंजूरी भी दे रखी है । क्या अब भी लगता है कि स्त्री का अस्तित्व "ओट" में रह गया है ? 

सोचकर बताना सखि, । कल बात करेंगे इस पर । 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
22.6.22 

   21
3 Comments

Radhika

09-Mar-2023 12:43 PM

Nice

Reply

Gunjan Kamal

06-Mar-2023 08:53 AM

Nice

Reply

Seema Priyadarshini sahay

23-Jun-2022 10:49 AM

बेहतरीन

Reply